सुप्रीम कोर्ट में लोकसभा और विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण देने की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई 21 नवंबर को

एजेंसी। लोकसभा और विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण देने की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (20 सितंबर) को कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को मूल 10 साल की अवधि से आगे बढ़ाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 21 नवंबर को होगी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि वह 104वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम की वैधता की जांच करेगी, जिसने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी-एसटी के लिए कोटा अगले 10 सालों के लिए बढ़ा दिया है।

कोर्ट पहले के विस्तार की वैधता पर विचार नहीं करेगा

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ तौर पर स्पष्ट किया कि वह पहले के संशोधनों के जरिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के लिए दिए गए पहले के विस्तार की वैधता पर विचार नहीं करेगा। पीठ ने कहा, “104वें संशोधन की वैधता इस हद तक निर्धारित की जाएगी कि यह एससी-एसटी पर लागू होता है क्योंकि एंग्लो इंडियंस के लिए आरक्षण संविधान के शुरुआत से 70 साल के बाद खत्म हो गया है।” पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।

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कार्यवाही के शीर्षक को ‘संविधान का अनुच्छेद 334’ नाम दिया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यवाही का शीर्षक “संविधान का अनुच्छेद 334” (In Re: Article 334 of the Constitution) होगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर वकील सी ए सुंदरम ने कहा कि मुख्य मुद्दा यह होगा कि क्या आरक्षण की अवधि बढ़ाने वाले संवैधानिक संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन किया है।

अनुच्छेद 334 में सीटों के आरक्षण के विशेष प्रावधान

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 334 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण के विशेष प्रावधान है। इसके साथ ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में नामांकन द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय के विशेष प्रतिनिधित्व को एक निश्चित अवधि के बाद समाप्त करने का उल्लेख है।

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आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी/एसटी को आरक्षण देने वाले 79वें संविधान संशोधन अधिनियम (1999) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 सितंबर 2003 को मामले को पांच जजों की पीठ के पास भेज दिया था।

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