अब स्कूल प्रार्थना में गूँजेंगी, गिर्दा की कविता, नैनीताल जिलाधिकारी ने शिक्षा विभाग को दिए निर्देश

कुमाऊँ के सुप्रसिद्ध जनकवि स्व0 गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का प्रसिद्ध गीत उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि, मातृ भूमि मेरी पितृ भूमि…के स्वर अब प्राइमरी से लेकर बारहवीं तक के स्कूलों की प्रार्थना सभाओं में सुनाई देंगे। इसके लिए नैनीताल जिले के जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल ने शिक्षा विभाग को आदेश भी दे दिए हैं।

जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाने के लिए स्कूली शिक्षा में परिवर्तन की आवश्यकता है। जिसकी शुरुआत स्कूल में प्रतिदिन संचालित होने वाली प्रार्थना सभा से होनी चाहिए।

अब जल्द ही नैनीताल जिले के 1 से 12वी तक के प्रत्येक स्कूल की असेम्बली में ‘गिर्दा’ का गीत सुनाई देगा। जिलाधिकारी गर्ब्याल ने कहा कि गिर्दा की इस कविता उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि…से अपने राज्य की महत्ता, वीरों की गाथाएँ, पितरों की भूमि, हिमालय, चारधाम, बदरी, केदार, कनखल, हरिद्वार के अलावा मानसरोवर के महत्व के बारे में भी बच्चों को जानकारी प्राप्त होगी।

स्कूलों में गूंजेगी, उत्तराखंड के ‘गिर्दा’ की कविता

कुमाऊँ के सुप्रसिद्ध जनकवि स्व0 गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का प्रसिद्ध गीत उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि, मातृ भूमि मेरी पितृ भूमिके स्वर अब प्राइमरी से लेकर बारहवीं तक के स्कूलों की प्रार्थना सभाओं में सुनाई देंगे। इसके लिए नैनीताल के जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल ने शिक्षा विभाग को आदेश भी दे दिए हैं।

परंपरा और संस्कृति की होगी पहचान

जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाने के लिए स्कूली शिक्षा में परिवर्तन की आवश्यकता है। जिसकी शुरुआत स्कूल में प्रतिदिन संचालित होने वाली प्रार्थना सभा से होनी चाहिए। जल्द ही नैनीताल जिले के सभी सरकारी स्कूलों मे कक्षा 1 से 12वी तक असेम्बली में ‘गिर्दा’ का गीत सुनाई देगा। जिलाधिकारी गर्ब्याल ने कहा कि गिर्दा की इस कविता उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि…से अपने राज्य की महत्ता, वीरों की गाथाएँ, पितरों की भूमि, हिमालय, चारधाम, बदरी, केदार, कनखल, हरिद्वार के अलावा मानसरोवर के महत्व के बारे में भी जानकारी प्राप्त होगी।

जिले के पहाड़ी ब्लॉक में होगी कुमाँउनी में पढ़ाई

जिले में सरकारी स्कूलों मे कक्षा 1 से लेकर 5वी तक के पाठ्यक्रम में कुमाँउनी भाषा की पुस्तकों को भी लागू किया जाएगा। कुमाँउनी भाषा दिन ब दिन विलुप्त होती जा रही है। जिसको ध्यान में रखते हुए जिले के सभी पहाड़ी ब्लॉक्स के स्कूलों में कुमाँउनी भाषा की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की जाएगी। ताकि आने वाली पीढ़ी को अपनी भाषा बोली की समझ और उसके प्रति सम्मान पैदा हो सके।

स्थानीय बोली को बचाने की अनूठी पहल

काफी लंबे समय से स्थानीय भाषा को बचाने की बात हो रही थी। जिसकी शुरुआत पौड़ी जिले अलग अलग स्कूलों में हुई थी। कई स्कूलों में गढ़वाली में प्रार्थनाएं और गीत भी गाये गए। लेकिन गढ़वाली के ही किसी लेखक या कवि की कविता को स्कूलों की प्रार्थना में शामिल किया गया हो, ऐसा नही हुआ।

परंतु अब उम्मीद है कि नैनीताल की ही तरह गढवाल और कुमाऊँ के बाकी जिलों मे भी इस प्रयास को उदाहरण मानते हुए प्रार्थना और पाठ्यक्रम मे स्थानीय बोली को महत्व दिया जाएगा। और उसके संवर्धन के लिए राजकीय प्रयास भी देखने को मिलेंगे। 

 

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