उत्तराखंड: बागेश्वर मे केदारनाथ जैसी आपदा के संकेत, भूस्खलन से शंभू नदी पर 600 मीटर लंबी प्राकृतिक झील बनी

पिंडर नदी की सहायक शंभू नदी पर बनी प्राकृतिक झील

केदारनाथ की 2013 की त्रासदी कोई भूले नहीं भूल सकता। जिसमे कुछ सेकेंड की आपदा ने हजारों लोगों को यमलोक पंहुचा दिया था। साथ जो आर्थिक नुकसान केदारघाटी से ऋषिकेश तक हुआ उसका अनुमान भी लगाना मुश्किल था। इस  आपदा से उत्तराखंड ही नही अपितु पूरा विश्व सहम गया था। ठीक वैसी ही स्थिति आज बागेश्वर के कुंवारी गांव के पास पिंडर नदी पर भूस्खलन के कारण बनी अस्थायी प्राकृतिक झील के कारण पैदा हो गए हैं।

सर्वेक्षण रिपोर्ट क्या कहती है

रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2013 से 2019 के दौरान भूस्खलन के कारण पिंडर नदी की सहायक शंभू नदी के ऊपरी भाग मे प्रवाह अवरुद्ध हो जाने से बागेश्वर के कुंवारी गांव के पास एक 600 मीटर लंबी अस्थाई झील का निर्माण हो गया है। जो भविष्य मे पिंडर और अलकनंदा घाटी के लिए एक बड़ा खतरा भी बन सकता  है।  

प्रशासन का अनुमान और तैयारी 

बागेश्वर जिला प्रशासन के अधिकारी (जो अपना नाम नही बताना चाहते) ने बताया, “कि वैसे झील का पानी अभी स्वाभाविक रूप से रिस रहा है,लेकिन बाद में यह बड़े पैमाने पर बाढ़ का कारण बन सकता है, जिससे पिंडर और अलकनंदा नदी के साथ लगी बस्तियों में गंभीर क्षति हो सकती है।”

इस पर कपकोट एडीएम परितोष वर्मा ने बताया कि कुंवारी गांव में 2013 से भूस्खलन हो रहा है। जिस कारण यहाँ नदी ने अपना रास्ता थोड़ा बदल लिया है। यही वजह है जिससे पिंडारी नदी के पास एक ६०० मीटर लंबी प्राकृतिक झील बन गई।  झील से पानी लगातार निकल रहा है इसलिए जलप्रलय की आशंका बहुत कम है। फिर भी हम इस पर नजर बने हुए है। नदी के मार्ग से मलबा निकालने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। 

एक अन्य अधिकारी के अनुसार, भूस्खलन और झील के प्रभाव के कारण पहाड़ी ढलान, जिस पर कुंवारी गांव स्थित है, वह धीरे-धीरे नीचे खिसक कर शंभू नदी के प्राकृतिक प्रवाह को भी बाधित कर रहा है। पिंडर नदी चमोली के कर्णप्रयाग में अलकनंदा में विलीन हो जाती है। 

नदियों को जोड़ने की परियोजना का सर्वेक्षण

आपको बता दें कि उत्तराखंड में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने पिंडारी ग्लेशियर में केंद्र द्वारा प्रस्तावित नदी-जोड़ने की परियोजना के लिए जमीनी सर्वेक्षण का किया गया है। सर्वेक्षण के समय ही विशेषज्ञों को इस क्षेत्र में गहरी दरारें दिखाई दी थी।

नदियों को जोड़ने के लिए किया गया ये सर्वेक्षण भारत में अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है। सरकार का मानना है कि अगर ये परियोजना धरातल पर उतरती है तो समूचे भारत के पीने के पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। 

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